आयु‍र्वेद में वर्जित है हर घंटे खाना

आयु‍र्वेद में वर्जित है हर घंटे खाना

सुमन कुमार

भोजन शरीर को चलाए रखने के लिए अनिवार्य तत्‍व है मगर भोजन करते समय हम सिर्फ जीभ का ध्‍यान रखते हैं और शरीर को भूल जाते हैं। यहां यह जानना दिलचस्‍प होगा कि पारंपरिक भारतीय स्‍वास्‍थ्‍य विधान जिसे आमतौर पर हम आयुर्वेद के नाम से जानते हैं, हमारे रोजाना के भोजन के बारे में क्‍या सलाह देता है।  

दिल्‍ली के मूलचंद अस्‍पताल के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख वैद्यराज श्री विशाल त्रिपाठी सेहतराग से बातचीत में कहते हैं कि आयुर्वेद में बच्‍चे के मां के गर्भ में आने से लेकर उसकी आयु पूर्ण होने तक वह कैसे स्‍वस्‍थ रहे और अगर किसी वजह से रोगी हो जाए तो कैसी चिकित्‍सा ले इसका पूरा विवरण दिया गया है। sehatraag.com में हम नियमित रूप से आयुर्वेद की सलाहों की चर्चा करते रहेंगे। इसी कड़ी में जानते हैं कि युवावस्‍था जो कि आयुर्वेद के अनुसार मनुष्‍य के 20 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक की अवस्‍था को माना गया है उसमें किस प्रकार की जीवनशैली होनी चाहिए।

उपयुक्‍त भोजन

दरअसल आयुर्वेद में युवावस्‍था में उपयुक्‍त व्‍यायाम, उपयुक्‍त भोजन, उपयुक्‍त निद्रा और उपयुक्‍त वैवाहिक जीवन की सलाह दी गई है। यहां उपयुक्‍त भोजन का अभिप्राय है कि युवावस्‍था के भोजन में छह रस जरूर हों। ये छह रस हैं मधुर यानी मीठा, अम्‍ल यानी खट्टा, लवण यानी नमकीन, कटु यानी तीखा, तिक्‍त यानी कड़वा और कसाय यानी कसैला। कसैला का अर्थ आप आंवले के स्‍वाद से समझ सकते हैं जबकि कड़वा नीम और कुटकी का स्‍वाद होता है। 

उपयुक्‍त मात्रा

आयुर्वेद बताता है कि उपयुक्‍त भोजन को उपयुक्‍त मात्रा में करना भी जरूरी है अन्‍यथा शरीर रोगग्रस्‍त हो जाएगा। डॉक्‍टर श्रीविशाल त्रिपाठी कहते हैं कि यहां उपयुक्‍त मात्रा का मतलब ये है कि जितना खाने के बाद पेट में तकलीफ न हो या पेट न फूले, भूख भी खत्‍म हो जाए और आप स्‍वस्‍थ तरीके से अपने रोजमर्रा के काम कर सकें। इसलिए भोजन की मात्रा हमेशा व्‍यक्ति की उम्र और वजन के अनुसार होती है।

हर घंटे खाना वर्जित

आजकल आधुनिक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ और भोजन परामर्शदाता यह सलाह देते हैं कि दिन में एक बार में ज्‍यादा खाने से बेहतर है थोड़ा-थोड़ा करके खाना। आयुर्वेद बार-बार भोजन की सलाह नहीं देता। दरअसल आयुर्वेद में हर घंटे कुछ खाते रहने को वर्जित किया गया है।

डॉक्‍टर त्रिपाठी कहते हैं कि आयुर्वेद में कहा गया है कि जो व्‍यक्ति शरीर के लिए हितकारी भोजन करता है, सही मात्रा में करता है और सही समय से करता है, इसके साथ जो व्‍यक्ति‍ मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है वह निश्चित ही निरोगी रहते हुए 100 वर्ष की उम्र को प्राप्‍त करता है। 

 

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